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अब तक आपने पढ़ा कि किस तरह निशा ललित से दूर हुई और दया के पास आई और फिर किस तरह वह दुबारा ललित के पास आई. अब आगे….
एक दिन निशा का मन बहुत दुखी था. शायद दया ने उसे डांटा था और गालियां भी दी थी. इसलिए निशा ने फोनकरके ललित को अपने दिल को बहलाने के लिए बुला लिया. मौका नाजुक था. निशा ललित के कंधे पर सर रखकर बहुत रोई. दोनों की यह नजदीकी बहुत बढ़ गई और देखते ही देखते निशा ने सारी मर्यादा तोड़ ललित से शारीरिक संबंध बना लिए. अब इसे बेवफाई कहे या वक्त की नाजुक नब्ज, पर निशा ने एक ऐसा कदम उठा लिया जिसे वह अपना हक मानती थी और इसके पीछे उसका तर्क था कि उसे भी तो छोटी-सी खुश पाने का हक है.
खैर यह छोटी-सी खुशी अब उसे बहुत बड़ी लगने लगी. ललित का साथ उसे दया से भी ज्यादा अच्छा लगने लगा. ललित के साथ बिताया गया थोड़ा-सा ही समय उसे दया के साथ बिताए दिन भर से ज्यादा बेहतर लगने लगा. हालात ऐसे हो गए कि अब हर संडे का निशा बेकरारी से इंतजार करती और ललित के साथ अपना संडे अपने मन-मुताबिक बिताती. जिस प्रेम कहानी को निशा ने प्यार से शुरु किया था कहीं ना कहीं अब उसके सेक्स का तड़का लग गया था.
पर कहते हैं हम इंसानों की एक आदत होती है कि वह हद से ज्यादा किसी चीज से संतुष्ट नहीं हो पाते. कुछ ही दिनों में ललित को भी अपने घर की जिम्मेदारियां निभानी पड़ी और उसका निशा से मिलना कम हो गया. और अब दया के साथ भी निशा का वैवाहिक जीवन कुछ खास नहीं चल रहा था. धीरे-धीरे निशा को आत्म-ग्लानि होने लगी.
लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने निशा को सही और गलत के बीच का फर्क कांच की तरह साफ कर दिया. उस दिन बरसात हो रही थी. निशा की थोड़ी तबियत खराब थी.दया काम पर गया था और इसी बीच ललित ने फोन करके निशा से कहा कि वह आ रहा है. निशा ने लाख मना किया पर ललित जी आज थोड़े मूड में थे सो आ गए. निशा की तबियत पहले ही खराब थी और ऊपर से ललित भी आ गया. अभी ललित आया ही था कि निशा की तबियत बिगड़ने लगी और उसे चक्कर आने लगे. निशा को ऐसी हालत में देख कर तो ललित के होश उड़ गए. वह फौरन निशा को उसी हालत में छोड़कर वहां से भाग गया. जिस समय निशा को उसके सहारे जरूरत थी उसी समय ललित वहां से चला गया.
निशा ने चक्कर खाकर गिरने से पहले ललित को पुकारा पर वह मदद को नहीं आया. थोड़ी ही देर में निशा को जरा सा होश आया और उसने मोबाइल से ललित को कॉल लगाने की कोशिश की पर फोन लग गया उसके पति को. जैसे ही दया ने सुना कि निशा बेहोश है वह फौरन दौड़ता हुआ घर पहुंचा और निशा को अस्पताल लेकर आया. अस्पताल में पता चला कि निशा को बेहद कमजोरी है और उसे खून की भी जरूरत है. दया ने ऐसे समय में निशा को खून दिया और पति होने का फर्ज निभाया.
जैसे ही निशा को होश आया वह फूट-फूट कर रोने लगी. उसे यह समझ ही नहीं आया कि आखिर ललित भागा क्यूं? उसकी आंखों के सामने कई सवाल घूमने लगे. सही क्या और गलत क्या है? उसको समझ आ गया कि जिस खुशी की तलाश में वह बार-बार ललित को बुला रही थी उसी ने मुसीबत से समय उससे पल्ला झाड़ लिया. आंखों में आंसुओं का सैलाब लिए वह दया के कंधों पर सर रखकर अपने घर को गई और मन से ललित को पूरी तरह निकाल दिया.
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