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काफी लंबे समय बाद दुबारा जागरण जंक्शन पर लौटने का मौका मिला सो सोचा जो कहानी शुरु की थी उसे पूरा ही कर देता हूं. यह कहानी थी निशा, दया और ललित की. किस तरह पहले प्यार होता है फिर जुदाई और उसके बाद बेवफाई. आज के हालात पर एकदम फिट बैठती यह अनकही-अनसुनी कहनी मेरी कलम से.
आज प्यार में आदर्श किस कदर गिर चुके हैं यह कहानी को पढ़कर साफ हो जाता है. तो चलि बढ़ाते हैं कहानी को.
दया को निशा पहली ही नजर में पसंद आ जाती है. दया का अपना कार का गैराज है. दया अच्छा खासा कमाता खाता और थोड़ा बहुत पैसे वाला है पर शक्ल सुरत में निशा से थोड़ा उन्नीस ही है. पर फिर भी निशा को लगता है जब ललित ने साथ छोड़ ही दिया है तो फिर वो क्यू उसके लिए मरती रहे इसलिए उसने भी सोच लिया कि वह दया के साथ ही अपनी जिंदगी काटेगी.
निशा ने किसी तरह अपने परिवार वालों से दया के बारें में बात की और निशा के माता पिता को भी दया पसंद आ गए और बड़ी धूम धाम से दोनों की शादी हुई. शादी के बाद निशा अपने ननिहाल की छाव छोड़ उस इंसान के घर चल पड़ी जिसके साथ उसकी मात्र दो ही मुलाकात हुई थी.
कहते है ना अगर पहले किसी चीज को इस्तेमाल ना करे और उसपर हद से ज्यादा विश्वास कर लें तो वह नुकसानदायक होती है. और भारत में जहां शादी एक ऐसा बोझ है जिसे मां बाप बच्चों के ऊपर थोप देते हैं, बिना यह सोचे समझें कि उससे बच्चों के ऊपर क्या असर पड़ेगा और यहां अगर शादी के बाद तलाक ले लो तो दूनिया वालों की नजरें ही इंसान को मार डालती हैं.
निशा ने दया को अपने जीवन का हमसफर तो बना लिया पर अपने हमसफर के साथ साथ उसे अपने पूर्व प्रेमी की भी याद आती रही. शायद इसमें गलती दया की हो पर वह भी क्या करें जब निशा के दिल के कौने में ही ललित की तस्वीर जमा बैठी थी.
निशा ने शादी के एक साल बाद दुबारा ललित से बात चीत करना शुरु कर दिया. इसी दरमियां दया की मां का निधन हो गया और दया के भाईयों ने जायदाद के लिए कानूनी लड़ाई शुरु कर दी. एक ही झटके में दया अकेला हो गया, पर यहां उसके सहारे के लिए निशा हमेशा खड़ी रहीं. घर बंट गए और निशा और दया अकेले रहने लगे.
लेकिन शायद निशा का परिवार वालों से अलग होना उसके लिए अच्छा ही साबित हुआ. निशा को अब एक अच्छा मौका मिल गया ललित से मिलने का. फोन पर बातचीत से दोनों की करीबी इतनी बढ़ गई कि अब ललित दया की गैर मौजुदगी में निशा से मिलने आ जाता था. लेकिन यहां यह बताना जरुरी है कि दोनों के बीच कुछ हुआ नहीं. सिर्फ चाय, बातचीत बस. लेकिन दिलों के तुफान में यह थोड़ी सी दूरी कब तक बंट पाती.
फरेब की असली कहानी जारी है अगले अंश में.
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